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Thursday, 28 March 2019

जानें, भारत में पहले लोकसभा चुनाव की कुछ दिलचस्प बातें



नई दिल्ली : देश में सत्रहवीं लोकसभा चुनाव (2019) की तारीखें घोषित हो चुकी हैं। कुछ बड़ी पार्टियों के अलावा सैकड़ों छोटी-छोटी पार्टियां मैदान में ताल ठोक रही हैं। आज हम लोकतांत्रिक दिशा में चलते हुए काफी आगे तक निकल चुके हैं, लेकिन पहले आम चुनाव के बारे में लोगों को बहुत ही कम जानकारी है। आइए जानते हैं पहले आम चुनाव की कुछ खास बातें।
देश में हमारा अपना संविधान लागू होने के बाद पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ था। जो 25 अक्टूबर 1951 से शुरू होकर 21 फरवरी 1952 तक चला था। मतलब यह कि पहला आम चुनाव पांच महीने तक चला था। इस पहले आम चुनाव में 14 राष्ट्रीय पार्टियों और 39 क्षेत्रीय पार्टियों ने किस्मत आजमाई थी। तब 489 लोकसभा सीटों के लिए 17.3 करोड़ वोटरों ने मतदान किया था। तब वोट देने की उम्र 21 वर्ष थी। कुल 44 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। पहले आम चुनाव में कांग्रेस, सीपीआई, भारतीय जनसंघ जैसी प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां थीं। पहले आम चुनाव में कांग्रेस को 364 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर सीपीआई थी, जिसे 16 सीटें मिली थीं। वहीं सोशलिस्ट पार्टी (एसपी) को 12 और भारतीय जनसंघ ने 3 सीटें मिली थीं।
चुनाव आयोग का कमाल देख दुनिया थी हैरान
पहले आम चुनाव के दौरान सुकुमार सेन मुख्य चुनाव आयुक्त थे। मतलब यह कि वह देश के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त थे। दरअसल भारत के गणतंत्र बनने के एक दिन पहले ही चुनाव आयोग का गठन किया गया था। तब जवाहरलाल नेहरू के सुझाव पर सुकुमार सेन को पहला मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया। बताया जाता है कि जवाहर लाल नेहरू ने उनका नाम इसलिए सुझाया था क्योंकि वह बेहद काबिल भारतीय नागरिक सेवा (आईसीएस) अफ़सर तो थे ही बहुत बड़े गणितज्ञ थे। सुकुमार सेन मुख्य चुनाव आयुक्त बनने से पहले पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव थे। उन्होंने 1952 और 1957 के चुनाव कराए। भारत में सफल चुनाव कराने वाले सेन को सूडान सरकार ने अपने यहां होने वाले प्रथम चुनाव की निगरानी का जिम्मा सौंपा था। वह बहुत धैर्यशील भी थे। सच कहा जाए तो उस समय ही चुनाव आयोग के सामने बहुत बड़ी चुनौती खड़ी हो गई थी, लेकिन उन्होंने बहुत ही सूझबूझ से सारा काम संभाल लिया। यहां तक कि चुनाव को लेकर जवाहर लाल नेहरू बहुत जल्दबाजी में थे। वह 1951 की शुरुआत में ही चुनाव चाहते थे, लेकिन सुकुमार सेन ने उनकी जल्दबाजी को नजरअंदाज कर चुनाव आयोग की चुनौतियों को समझा और उसकी के अनुसार अपना काम किया। इसकी वजह यह थी कि देश में इसके लिए पहले से कोई ढांचा तैयार नहीं था, जनता भी चुनाव प्रक्रिया से अनभिज्ञ थी। ऐसे में उन्हें सारा कुछ देखकर ही चुनाव कराना था। पहला चुनाव  बैलेट पर हुआ था। उस समय चुनाव आयोग ने ढाई लाख केंद्र बनवाए गए थे। इतना ही नहीं लोगों को मतदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए नुक्कड़ नाटक कराए गए थे। लोगों को चुनाव की प्रक्रिया समझाने के लिए रेडियो और फ़िल्मों का भी सहारा लिया।
चुनाव प्रचार भी कम दिलचस्प नहीं था
मौजूदा समय में राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे खिलाफ जमकर आरोप प्रत्यारोप लगा रही हैं। यहां तक कि अपनी जीत हासिल करने के लिए एक दूसरे के खिलाफ जहर तक उगल रही हैं। नौबत गाली-गलौज और एक दूसरे के अपमान करने तक पहुंच चुकी है। लेकिन देखा जाए तो इसकी शुरुआत पहले आम चुनाव में ही हो गई थी। इस चुनाव में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने साम्प्रदायिकता पर हमला बोला था तो डॉ. भीमराव अंबेडकर ने नेहरू की नीतियों पर प्रहार किया था। इसी तरह जनसंघ संघ शक्ति कलियुगेकी अवधारणा का प्रसार करने में लगा हुआ था तो, कृपलानी और जयप्रकाश ने कांग्रेस द्वारा ग़रीबों की अनदेखी पर हमला बोला था। इतना ही नहीं कम्युनिस्ट पार्टी ने अन्य को भ्रष्टऔर धूर्ततक कह दिया था। इसमें एक महत्वपूर्ण बात यह भी थी कि कम्युनिस्ट पार्टी को सोवियत रूस से सहयोग मिल रहा था। खुद मास्को रेडियो इस पार्टी के एजेंडे को लोगों तक पहुंचा रहा था। एक दूसरे की व्यक्तिगत और नीतियों की बुराई के अलावा दीवारों और ऐतिहासिक स्थलों को पोस्टरों और नारों से पूरी तरह पाट दिया गया था। पार्टियां यहीं तक आकर नहीं रुकीं, बल्कि गाय और अन्य पशुओं की पीठों पर लिखकर भी अपनी पार्टियों के लिए वोट मांगे। बात यहीं नहीं रुकी, बल्कि नेहरू ने खुद को देश की भलाई के लिए वोट मांगने वाला भिखारी तक कह डाला!

लोकतांत्रिक इतिहास में दर्ज है श्याम सिंह नेगी का नाम

भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक खास घटना हमेशा के लिए दर्ज हो चुकी है। वह है पहले लोकसभा चुनाव में पहला वोट डालना। यह गौरव हिमाचल प्रदेश के किन्नौर ज़िले के छीनी तहसील के आल्पा गांव निवासी श्याम शरण नेगी के नाम दर्ज है। श्याम सिंह नेगी का जन्म दो जुलाई 1917 को हुआ था। मतलब यह है कि मौजूदा समय में उनकी उम्र सौ साल से पार हो चुकी है। पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से शुरू होकर 21 फरवरी 1952 तक चला था। बर्फबारी और मौसम के मिजाज को देखते हुए हिमाचल प्रदेश के ऊपरी इलाकों में सबसे पहले मतदान हुआ था। यानी 25 अक्टूबर 1951 को सबसे पहले मतदान हुआ था। क्योंकि जनवरी-फरवरी में तो उन इलाकों में घर से निकलना ही दुश्वार होता है। ऐसे में पोलिंग पार्टी का उन इलाकों में पहुंचना मुश्किल ही था। यही कारण था कि कुछ खास क्षेत्रों में पहले चरण का मतदान रखा गया था। जिसमें पहला वोट देने का गौरव श्याम सिंह नेगी को है।
जानें इन खास बातों को
-लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे। जिसमें लोकसभा की 489 सीटों और विधानसभा की 4011 सीटों के लिए मतदान हुआ था।
-पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में 18000 प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी।
-उस दौरान 17.6 करोड़ मतदाताओं का पंजीकरण हुआ था।
-मतदान के लिए 20 लाख बैलेट बाक्स का निर्माण किया गया था। इसे बनाने में 8200 टन स्टील था।
-2.24 लाख मतदान केंद्र बनाए गए थे। 16500 लोगों को 6 महीने के अनुबंध पर मतदान कराने के लिए नियुक्त किया गया था।
-पहले चुनाव के लिए 56000 अधिकारियों को निगरानी के लिए चुना गया था। 2.8 लाख वालंटियर भी मतदान कराने के कार्य में सहयोग दे रहे थे।
-पहले चुनाव में 24 लाख पुलिसकर्मियों को लगाया गया था।
-3000 फिल्म पूरे भारत में दिखाई गईं, ताकि लोगों को चुनाव संबंधी जानकारी मिल सके।



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